भविष्यपुराण में जिक्र आता है कि इक समय जब हिन्दुस्तान की सीमा हिंदकुश पर्वत तक थी तो सनातन का आखिरी शिव मंदिर हिन्दकुश पर्वत पर था.
उसके आगे की जगह को नरक या जहन्नुम बोला जाता था.
वहीं इतिहास की कई किताबों में जिक्र है कि हिन्दकुश पर्वत के पार काला पानी था और वहां जीवन जीना मुश्किल था.
इस रेगिस्तान में जीवन नहीं था और जो लोग वहां रहते थे वह इन्सान नहीं थे. इसीलिए भगवान शिव की घोषणा थी कि कोई भी इस शिव मंदिर के पार नहीं जायेगा. भक्त आते थे और यहाँ तक की यात्रा पूरी कर वापस चले जाते थे.
तब शिव की एक भविष्यवाणी हुई
भविष्यपुराण के अलावा इतिहास की कुछ पुरानी पुस्तकें कहती हैं कि – अफगान इतिहासकार खोण्डामिर के अनुसार यहाँ पर कई आक्रमणों के दौरान 15 लाख हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया गया था. इसी के कारण यहां के पर्वत श्रेणी को हिन्दुकुश नाम दिया गया, जिसका अर्थ है 'हिंदुओं का वध' ताकि आने वाली पीढ़ी हिन्दुओं की इस हत्याकाण्ड, दासता एवं अत्याचार को याद रखें.
ईसा से पहले पहली सहस्राब्दी में दो प्रमुख हिन्दु साम्राज्य हुआ करते थे. पहला गांधार (कंधार) एवं दूसरा वाहिक प्रदेश (बेक्ट्रिया का बलख प्रदेश). इनका विस्तार वर्तमान हिन्दुकुश के इस पार तक था.
'कुश' शब्द का उद्भव पर्शिन (वर्तमान में ईरान, भूतपूर्व पर्शिया या फारस) भाषा के 'कुश्तार' अर्थात Slaughter, हत्याकांड से हुआ है.
ऐसा बोला जाता है कि एक बार कुछ लोग हिन्दकुश पर्वत पर शिव के दर्शन करने गये थे तो भगवान शिव ने इन लोगों को बताया था कि अब आप सभी यहाँ से लौट जाओ. मैं (शिव) भी इस स्थान को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ रहा हूँ. जाओ और सभी को बताओ कि अब यहाँ किसी को नहीं आना है. थोड़े दिनों में प्रलय की शुरुआत यहाँ होने वाली है.
भविष्यपुराण
तो यह प्रलय क्या थी?
भगवान शिव ने तो प्रलय की बात कुछ लोगों को बताई थी और फिर भी शिव भक्तों के अपने भगवान की बात नहीं मानी थी. और 15 लाख हिन्दू सामूहिक नरसंहार की भेट चढ़ गये थे. लेकिन वहीं कुछ संत लोग बताते हैं कि भगवान जब किसी स्थान से नाराज होते हैं तो वहां प्राकृतिक प्रलय आने लगती हैं. आज हिंद्कुश पर्वत और आसपास का क्षेत्र भूकंप के आने का केंद्र बना हुआ है.
तो अब पढ़िए आँखें खोल देने वाला सच
भविष्यपुराण में इस बात के भी संकेत हैं कि भारत की तबाही प्राकृतिक प्रलय से होनी है. ऐसी ही भविष्यवाणी नेस्त्रादेमस ने भी भारत के लिए कर रखी है कि भारत की तबाही किसी प्रलय में ही होनी है. वैसे अब गौर किया जाए तो भारत के अन्दर पहले की तुलना में अधिक प्राकृतिक परेशानियाँ आने लगी हैं जो इस बात की सूचक हैं कि अब वह समय नजदीक आता जा रहा है.
भविष्यपुराण
क्या कहती है हमारी जांच?
तो आज हम एक बड़ी भविष्यवाणी करने वाले हैं. क्या आपने कभी गौर किया है कि जब-जब केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुल रहे हैं तभी वहां जमीन हिल रही है और भारी तबाही हो रही है. ऐसा कुछ पिछले 4 और 5 सालों से निरंतर हो रहा है. तो एक आंकलन के अनुसार ऐसा लग रहा है कि भगवान अपना यह स्थान भी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन भगवान की इस भाषा को कोई नहीं समझ पा रहा है. देवस्थान उतराखंड भी अब इस बात का सबूत बनता जा रहा है कि अब शायद कुछ अधिक बुरा होने वाला है.
भविष्यपुराण
इंसान है जिम्मेदार
इस बार भगवान नाराज हैं क्योकि धर्म के नामपर धर्म को लूटा जा रहा है. तुम धर्म की रक्षा करो तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा, लेकिन हम धर्म की रक्षा नहीं कर रहे हैं. विकास की अंधी दौड़ में सब तबाह कर दिया गया है. इंसान
भविष्य पुराण १८ प्रमुख पुराणों में से एक है। विषय-वस्तु एवं वर्णन-शैली की दृष्टि से यह एक विशेष ग्रंथ है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद के विषयों का संग्रह है। वेताल-विक्रम-संवाद के रूप में इसमें रमणीय कथा-प्रबन्ध है। इसके अतिरिक्त इसमें नित्यकर्म, संस्कार, सामुद्रिक लक्षण, शान्ति तथा पौष्टिक कर्म आराधना और अनेक व्रतोंका भी विस्तृत वर्णन है।[1] भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। इससे पता चलता है कि ईसा और मुहम्मद [2] के जन्म से बहुत पहले ही भविष्य पुराण में महर्षि वेद व्यास ने पुराण ग्रंथ लिखते समय मुस्लिम धर्म के उद्भव और विकास तथा ईसा मसीह तथा उनके द्वारा प्रारंभ किए गए ईसाई धर्म के विषय में लिख दिया था।[3]
यह पुराण में भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का वर्णन है। इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकों ने प्रायः इसी का आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का वर्णन है। इसके मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी अन्य पुराण, धर्मशास्त्र में मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है।
भविष्य पुराण के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हजार के लगभग होनी चाहिए। परन्तु वर्तमान में कुल १४,००० श्लोक ही उपलब्ध हैं। विषय-वस्तु, वर्णनशैली तथा काव्य-रचना की दृष्टि से भविष्यपुराण महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसकी कथाएँ रोचक तथा प्रभावोत्कपादक हैं।
भविष्य पुराण में भगवान सूर्य नारायण की महिमा, उनके स्वरूप, पूजा उपासना विधि का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसीलिए इसे 'सौर-पुराण' या 'सौर ग्रन्थ' भी कहा गया है।[4]
अनुक्रम
1 भविष्यपुराण की संरचना
1.1 ब्राह्म पर्व
1.2 मध्यम पर्व
1.3 प्रतिसर्ग पर्व
1.4 उत्तर पर्व
2 प्रतिसर्ग पर्व की भविष्यवाणियाँ
3 सन्दर्भ
4 बाहरी कडियाँ
भविष्यपुराण की संरचना
यह पुराण ब्रह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व तथा उत्तर पर्व - इन चार पर्वों में विभक्त है। मध्यमपर्व तीन तथा प्रतिसर्गपर्व चार अवान्तर खण्डों में विभक्त है। पर्वों के अन्तर्गत अध्याय हैं, जिनकी कुल संख्या ४८५ है। प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खण्ड के २३ अध्यायों में वेताल-विक्रम-सम्वाद के रूप में कथा-प्रबन्ध है, वह अत्यन्त रमणीय तथा मोहक है, रोचकता के कारण ही यह कथा-प्रबन्ध गुणाढ्य की 'बृहत्कथा', क्षेमेन्द्र की 'बृहत्कथा-मंजरी, सोमदेव के 'कथासरित्सागर' आदि में वेतालपंचविंशति के रूप में संगृहीत हुआ है। भविष्य पुराण की इन्हीं कथाओं का नाम 'वेतालपंचविंशति' या 'वेतालपंचविंशतिका' है। इसी प्रकार प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खण्डके २४ से २९ अध्यायों तक उपनिबद्ध 'श्रीसत्यनारायणव्रतकथा' उत्तम कथा-साहित्य है। उत्तरपर्व में वर्णित व्रतोत्सव तथा दान-माहात्म्य से सम्बद्ध कथाएँ भी एक से बढ़कर एक हैं। ब्राह्मपर्व तथा मध्यमपर्व की सूर्य-सम्बन्धी कथाएँ भी कम रोचक नहीं हैं। आल्हा-ऊदल के इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधार पर प्रचलित है।
ब्राह्म पर्व
इसमें कुल २१५ अध्याय हैं। भविष्य की घटनाओं से संबंधित इस पन्द्रह सहस्र श्लोकों के महापुराण में धर्म, आचार, नागपंचमी व्रत, सूर्यपूजा, स्त्री प्रकरण आदि हैं। इसके इस पर्व के आरम्भ में महर्षि सुमंतु एवं राजा शतानीक का संवाद है। इस पर्व में मुख्यत: व्रत-उपवास पूजा विधि, सूर्योपासना का माहात्म्य और उनसे जुड़ी कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। इसमें सूर्य से सम्बन्धित १६९ अध्याय है।
मध्यम पर्व
मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्रमें मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है। इस पर्व में मुख्य रूप से श्राद्धकर्म, पितृकर्म, विवाह-संस्कार, यज्ञ, व्रत, स्नान, प्रायश्चित्त, अन्नप्राशन, मन्त्रोपासना, राज कर देना, यज्ञ के दिनो�
पैसे के लालच में इतना डूब गया कि उसने यह भी नहीं देखा कि यहाँ भगवान के रहने का स्थान था और उसने बस विज्ञान को भगवान के स्थान पर जगह दे दी है.
तो कुलमिलाकर देखा जाए तो अब भारत की तबाही की भविष्यवाणी सही सिद्ध होती नजर आ रही है. आप अगर कुछ ध्यान से घटनाओं का आंकलन करेंगे तो आपको भी भारत में प्रलय आती नजर आने लगेगी.
वैसे भी भविष्यपुराण भी भारत में प्राकृतिक प्रलय की बात बोलता है.
आप भविष्यपुराण की भविष्य वाणी में कितना मानते है – आप भी अपने विचार, हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें. आपके विचारों का हमें इंतज़ार रहेगा.


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