मार्कण्डेय पुराण 6.
मौत नहीं जीत सका है लेकिन आज जो कहानी आपक्प बताने जा रहे है उस कहानी को पढ़कर आप भी आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि कैसे एक ऋषि ने ना सिर्फ अपनी मौत को पराजित किया अपितु स्वयम यमराज भी आकर उसके प्राण नहीं हर सके.
भृगु ऋषि के वंश में एक ऋषि हुए थे जिनका नाम मृकंदु था. मृकंदु और उनकी पत्नी भगवान् शिव के अनन्य भक्त थे.
ऋषि संतानहीन थे. संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के साथ शिव का कठोर तप किया.
ताप से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही ये भी बताया कि इस बालक की उम्र 16 वर्ष ही होगी.
कुछ समय बाद मृकंदु ऋषि की पत्नी ने एक स्वस्थ और तेज़ वाले पुत्र को जन्म दिया. इस बालक का नाम मार्कंडेय रखा गया.
बचपन से ही मार्कंडेय तीव्र बुद्धि के थे. जल्दी ही उन्होंने सभी वेदों और पुराणों का अध्ययन कर लिया.
ज्यों ज्यों उनकी उम्र बढ़ रही थे वैसे ही उनकी ख्याति और उनका ज्ञान भी बढ़ रहा था. लेकिन उनके माता पिता की चिंता भी बढती ही जा रही थी.
कारण था मार्कंडेय की कम उम्र में मृत्यु की भविष्यवाणी.
माता पिता की चिंता का कारण जानकार मार्कंडेय ने शिव की आराधना करने का निर्णय लिया. अब वो पूरे दिन शिव की तपस्या ही करते रहते थे. इस पराक्र दिन बीतते रहे और मार्कंडेय 16 वर्ष के हो गए. भविष्यवाणी के अनुसार अब उनकी मृत्यु का समय आ गया था.माता पिता दोनों दुःख के सागर में डूब गए.
यम के दूत मार्कंडेय को लेने के लिए जब आये तो मार्कंडेय शिव की गहन आरधना में लीं थे. बहुत प्रयास करने के बाद भी यमदूत उनके प्राण नहीं हर पाए
मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। इसमें ऋग्वेद की भांति अग्नि, इन्द्र, सूर्य आदि देवताओं पर विवेचन है और गृहस्थाश्रम, दिनचर्या, नित्यकर्म आदि की चर्चा है। भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्र की कथा, मदालसा-चरित्र, अत्रि-अनसूया की कथा, दत्तात्रेय-चरित्र आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है।[1]
अनुक्रम
1 विस्तार
2 संक्षिप्त परिचय
3 इन्हें भी देखें
4 सन्दर्भ
5 बाहरी कडियाँ
विस्तार
मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार श्लोकों का संग्रह है। १३७ अध्याय वाले इस पुराण में १ से ४२ वें अध्याय तक के वक्ता जैमिनि और श्रोता पक्षी हैं, ४३ वें से ९० अध्याय में वक्ता मार्कण्डेय और श्रोता क्रप्टुकि हैं तथा इसके बाद के अंश के वक्ता सुमेधा तथा श्रोता सुरथ-समाधि हैं। मार्कण्डेय पुराण आकार में छोटा है। इसमें एक सौ सैंतीस अध्यायों में ही लगभग नौ हजार श्लोक हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा इसके कथन से इसका नाम 'मार्कण्डेय पुराण' पड़ा।
इस पुराण के अन्दर पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर उनके द्वारा सब धर्मों का निरूपण किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में पहले मार्कण्डेयजी के समीप जैमिनि का प्रवचन है। फ़िर धर्म संज्ञम पक्षियों की कथा कही गयी है। फ़िर उनके पूर्व जन्म की कथा और देवराज इन्द्र के कारण उन्हें शापरूप विकार की प्राप्ति का कथन है, तदनन्तर बलभद्रजी की तीर्थ यात्रा, द्रौपदी के पांचों पुत्रों की कथा, राजा हरिश्चन्द्र की पुण्यमयी कथा, आडी और बक पक्षियों का युद्ध, पिता और पुत्र का आख्यान, दत्तात्रेयजी की कथा, महान आख्यान सहित हैहय चरित्र, अलर्क चरित्र, मदालसा की कथा, नौ प्रकार की सृष्टि का पुण्यमयी वर्णन, कल्पान्तकाल का निर्देश, यक्ष-सृष्टि निरूपण, रुद्र आदि की सृष्टि, द्वीपचर्या का वर्णन, मनुओं की अनेक पापनाशक कथाओं का कीर्तन और उन्हीं में दुर्गाजी की अत्यन्त पुण्यदायिनी कथा है जो आठवें मनवन्तर के प्रसंग में कही गयी है। तत्पश्चात तीन वेदों के तेज से प्रणव की उत्पत्ति सूर्य देव की जन्म की कथा, उनका महात्मय वैवस्त मनु के वंश का वर्णन, वत्सप्री का चरित्र, तदनन्तर महात्मा खनित्र की पुण्यमयी कथा, राजा अविक्षित का चरित्र किमिक्च्छिक व्रत का वर्णन, नरिष्यन्त चरित्र, इक्ष्वाकु चरित्र, नल चरित्र, श्री रामचन्द्र की उत्तम कथा, कुश के वंश का वर्णन, सोमवंश का वर्णन, पुरुरुवा की पुण्यमयी कथा, राजा नहुष का अद्भुत वृतांत, ययाति का पवित्र चरित्र, यदुवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण की बाललीला, उनकी मथुरा द्वारका की लीलायें, सब अवतारों की कथा, सांख्यमत का वर्णन, प्रपञ्च के मिथ्यावाद का वर्णन, मार्कण्डेयजी का चरित्र तथा पुराण श्रवण आदि का फल यह सब विषय मार्कण्डेय पुराण में बताये गये है।


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